Poem on father
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मुझे गौर से देखो मुझमे वो जरूर नजर आएगा ।
की मुझे गौर से देखो मुझमे वो जरूर नजर आएगा परछाई अंधेरो में साथ छोड़ देगी वो मेरे साथ पाताल में भी आएगा
है एक सख्स है जो बात जब मुझपर आ जायेगी तो वो अपना सब कुछ दाव पर लगायेगा मेरा पिता मेरे लिए खुदा से लड़ जायेगा ।
मैं रोता हूँ वो हसा देता है मैं रूठता हूँ वो मना लेता है
ना जाने किस मिट्टी का बना है ये पिता ।
जो हर दर्द छूपाकर अपने सीने में पूरे परिवार के सामने मुस्कुरा देता है
मुझे लिखना नही आता मैं बस कलम चला देता हूँ
फिर कुछ देर रुक के उन शब्दों को गुन गुना देता हूँ
महकती खुश्बू इन पन्नो की मुझे इनका दीवाना बना देती है
इनपे दौड़ने की मेरी कलम हर वक्त बेताब सी रहती है
जब शब्द नही मिलते तो मैं उन्हें ढूढ़ कर लाता हूँ
ना हो कोई सुनने वाला मुझे मैं खुद को सुनाता हूँ
जो कहते है मुझे तुझमे कोई बात नही उन्हें मैं अपनी सारी बात बताता हूँ
बहोत पीछे है मुझसे मैं उन्हें इस बात का यहसास दिलाता हूँ
मेरी कविताओ में अल्फ़ाज़ जरूर कम होंगे मगर जजबात बहोत ज्यादा मौत आएगी जिस दिन मेरी आंखे जरूर कम होंगी मगर आँसू बहोत ज्यादा मैं कवि हूँ साहब मुझे लड़ना
नही आता हार मंजूर है मगर मैं हाथ नही उठाता ।
दम बहोत है हाँथो में की मैं लिखता बहोत हूँ ।
दर्द बहोत है दिल मे की मैं शाका नही हूँ ।
मैं अब नसा नही करता की वो काम नही आता ज्यादा आता है याद तो लिखा नही जाता ।
Poem on father in hindi
बार बार तेरे पास आकर मनाना मैं भी नही चाहता
खता बस इतनी है की दिल को रोका नही जाता ।
वैसे तो हर हुक्म मान लेता हूँ मैं मगर ये हुक्म तो सुना भी नही जाता
बहोत दुख है जिसे देखे बिना रहा नही जाता वो हमें देखना भी नही चाहता ।कोशिस बहोत करता हू बीते लम्हे बुलाने की पर वो हो नही पाता ना जाने कितना डसकर बैठा है मेरे अंदर ।
की तुझे खुद से अलग किया नही जाता ।
मैं महीनों से समझा रहा हूँ खुद को मगर मुझे समझ मे नही आता ।क्या मिलेगा तेरी मोहब्बत से जो तुझे बुला नही पाता ।
मैं बाहर से हसकर अंदर से रोता हूँ तुझे क्या पता की मैं तुझसे दूर कैसे रहता हूँ ।तुझे लगता होगा कि मैं सब भूल गया ।
मैं तेरा सिवा सब भूल गया ।कीमत घट गई मेरे खून की जो उसने खुद को तुझसे किसी बेवफा का नाम बना लिया मैं यहां तुझे बुलाने की कोशिस में था मेरे पीठ पीछे उसने तुझे खुद बसा लिया ।
हैरान हूं कि अब रग रग में है तू मैं कहा कहा से निकालू जिसे एक दौर में इतना चाह लिया
उसे मैं एक पल में कैसे भुला दू .तू नजर आता है लम्हे लम्हे में मुझे मैं तेरी वो खूब सूरत सी तस्वीर दिल से कैसे निकालू । रूह और जिस्म में इस कदर बसा है तू की डर लगता है तुझे बुलाने की कोशिस में मैं खुद को ना मिटा दू ।
तू मानेगा नही पर तेरे जाने के बाद मेरे दिल का हाल बुरा है ।
उन शराब की बोतलों की दम पर ये दीवाना जी रहा है ।
मालूम होता है औरो से की तुझे कोई और पसंद है ।
ये बात मुझे उस दिन कहानी थी जिस दिन मैने कहा था मुझे तू पसंद है ।जान ले एक बात की एहमित हम जैसा कोई दे नही पायेगा ।
तेरे आँसुओ की कीमत हमसे बेहतर कोई समझ नही पायेगा ।हमसा आशिक तुझे उम्र भर मिल नही पायेगा क्योंकि हमने तुझे चाहा । सिर्फ तुझे चाहने के लिए जिस्म की नुमायित हम ताबयब से कर लेते ।
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