हमने सोचा ये मोहब्बत थी उनकी ..
हमने सोचा ये मोहब्बत थी उनकी पर जजबातो से खेलने की आदत थी उनकी कहते थे इश्क है मुझे दिलो जान से पर झूठ कहने की फितरत थी उनकी
तुझे इक तोहफा देना चाहती हूँ बिना नाम के तुझे पहचान देना चाहती हूँ
तेरी बेवफाई के किस्से सरेआम करना चाहती हूँ
अगर खेल होती मोहब्बत सच मे तो तुझे उस खेल का बादशाह बनाना चाहती हूँ
तुझसे ना मिलते तो अच्छा था आंखे चार ना करते तो अच्छा था
चलो हो गई Mohabbat उन्हें भी छोड़ो ये हाले दिल जुबा पर ना लाते तो भी अच्छा था
हमसा इश्क ना करेगा कोई तुमसे चाहे सारे जहा में देख लो
जिसे कहते हो तुम आज कल अपना उसे जरा आजमा कर तो देख लो …
[su_box title=”1″ style=”bubbles” box_color=”#ff4feb”]आज वक्त है तेरा कल दौर मेरा भी आएगा … आज वक्त है तेरा कल दौर मेरा भी आएगा जब रखेगा तू हसरते मेरी पर मुझे कुछ समझ ना आएगा[/su_box]
[su_box title=”2″ style=”bubbles” box_color=”#ff4feb”]सूरत सवारने की जरूरत नही … सूरत सवारने की जरूरत नही सादगी से घायल करती हूँ मांथे पर बिंदी आंखों में काजल बस यही लगाया करती हूँ और जिस दिन मंदिर पहोच जाऊ उन दीवानों की फरियाद पूरी करती हूँ[/su_box]
[su_box title=”3″ style=”glass” box_color=”#ff4feb”]मेरा दुसरो को देखनो उसे रास नही आता वो साथ तो है मगर पास नही आता यू तो नराज होता है मुझे गैरो के साथ देखकर कहना बहोत कुछ चाहता है बस कह नही पाता और आंखों ही आंखों में हो रही है मोहब्बत वो दिल मे है मगर दिल के पार नही आता मेरी इश्क की महफ़िल कुछ इसकदर सज रही है रातो में उसके अलावा कोई ख्वाब नही आता और चाहतो की एक चीज खास है उसमें उसे मौसमो की तरह बदलना नही आता[/su_box]
[su_box title=”4″ style=”soft” box_color=”#8fff4f”]जानती हूँ कहना बहोत कुछ चाहता है मुझसे.. की जानती हूँ कहना बहोत कुछ चाहता है मुझसे बस उसे बांते करने का बहाना नही आता और यू तो वो मेरा इजहार सूरत से पढ़ पाता है लबो से पूरा करना चाहता है बस कर नही पाता[/su_box]
[su_box title=”5″ style=”glass” box_color=”#4ff3ff”]हर रोज उसकी नाम की बिंदी लगती हूँ .. हर रोज उसकी नाम की बिंदी लगती हूँ कहि दिखे तो पलके झुका मुस्कुरा जाती हूँ और तेरे जाने के बाद जाना कुछ नही बदला मैं आज भी तेरा नाम सुनकर सर्मा जाती हूँ[/su_box]
इनायत उसकी कुछ इस कदर है मुझपे मैं खुद में बिखर रही हूँ उसकी मोहब्बत में सँवर के
की हर अंधेर रौशनी में लग गया ….
हर अंधेर रौशनी में लग गया जिसे देखो शायरी में लग गया और भीड़ लग गयी महफ़िल में जब हर दिल जला शायर बन गया
वो आखिरी मुलाकात उसके हाथों में मेरा हाथ
निगाहों में थे सवाल और दिल मे था बवाल
बहोत सवाल थे पूछने को उसकी इस बेरुखी से जूझने को दिल की धड़कनें बढ़ रही थी मैं इतना सज सवँर के क्यू गयी थी
उसने जुल्फों को चेहरे से हटाया मेरे कोमल गालो पर अपना हाथ फहराया वो लम्हा थम सा गया मैं खुद को रोक नही पाई
उसकी बाहों में जा समायी उससे लिपट कर मैं जब रोने को आई हटाकर गले से फिर करदी बेवफाई
हमने उनसे मोहब्बत की थी उन्हो ने चाय से मोहब्बत की थी …
हमने उनसे मोहब्बत की थी उन्हो ने चाय से मोहब्बत की थी
हमने चाय को लबो से लगा लिया उन्हो ने लबो के लबो से मोहब्बत की थी (more…)